भागों नहीं! दुनिया को बदलो। यह उपवाक्य राहुल सांकृत्यायन के जीवन का सूत्रपात करती है इसलिए उन्होंने अपने इस उपवाक्य से समाज के समस्त प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी के लिए आह्वान भी करते हैं। जाहिर है कि आज के समय जब हर तरफ अन्धेरा हो उस समय में राहुल सांकृत्यायन को और उनके लेखों को याद करना बहुत जरूरी हो जाता है।

महापंडित महाविद्रोही राहुल सांकृत्यायन कि परंपरा सतत प्रगति और प्रयोग, यथास्थिति विरोध और सामाजिक व सांस्कृतिक क्रांति के अविरल प्रवाह एवं जनता से अटूट जुड़ाव की परंपरा है। राहुल सांकृत्यायन की रचनाएं नकारात्मक परंपराओं और रूढ़ियों पर प्रचण्ड प्रहार और चिंतन का केन्द्रबिन्दु हैं जो तर्क और विज्ञान की नींव पर रखी गयीं हैं। वे दार्शनिक, विचारक, इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता, साहित्यकार,भाषाशास्त्री और मार्क्सवाद का प्रचारक होने के साथ-साथ एक लोकप्रिय जननेता भी थें। स्वाधीनता आंदोलन में और बिहार के किसानों के आंदोलन में उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से नेतृत्वकारी भूमिका निभायी। राहुल सांकृत्यायन को हिन्दी भाषा का यात्री लेखन का पिता माना जाता है। उन्होंने एक जगह ठहरने को मनुष्यता का पतन माना है। उन्होंने कई साहित्य अपनी यात्रा के दौरान लिखें हैं साथ ही साथ कई देशों का भ्रमण भी किया है।
राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय
पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव मे 9 अप्रैल 1893 को जन्मे राहुल सांकृत्यायन का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डेय था। उच्च कुल में पैदा होने के बावजूद भी वे उच्चकुलीन जातीय के द्वारा भेदभाव एवं उनके रूढ़ियों की आलोचनाएं जमकर करते थें। वे अपने लोगों के द्वारा शोषितों पर जातीय भेदभाव से आहात होते थें। जिससे वे परंपरागत रूढ़ियों मे जकड़े होने का विद्रोह किया और क्षुब्ध होकर घर छोड़ दिया। ताकि वे उन रूढ़ियों की कड़ियों में न जकड़े जाएं। सनातनी हिन्दू, आर्यसमाजी और बौद्ध भिक्षु के रूप में निरंतर सत्य और मुक्तिमार्ग की खोज मे जारी उनकी यात्रा उन्हें मार्क्सवादी विचारधारा से अवगत कराया। वे गेरुआ वस्त्र त्यागकर मजदूरों, किसानों के लिए लड़ने और उनके दिमागों मे बसी चली आ रही पुरानी परतंत्रता को तोड़ने को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया।
साहित्यिक योगदान
राहुल अनेक भाषाएं जानते थें। इतिहास, दर्शन और भाषा से लेकर दर्जनों विषयों के किसी भी पहलू पर ऐसी किताबें लिख सकते थें जो उन्हें शोहरत की ऊंची चोटी पर पहुंचा सकती थीं। लेकिन उन्होंने आरामदेह कमरों के मखमली बिस्तर और पुस्तकालयों मे भारी-भारी पोथियों मे सर खपानें के बजाय उन्होंने गाँवों कि धूल और धूप भरी पगडंडियों का रास्ता चुना। वे चाहतें तो विद्वता से भरे अनमोल ग्रंथों कि रचनाएं कर डालते जो उनके व्यक्तित्व कि सामयिक विद्वानों के बराबर स्थान दिलाते। लेकिन वे मेहनतकश जनों कि मुक्ति के विचार को अपना लेने के बाद उन्होंने अपनी अपार प्रतिभा का एक बड़ा हिस्सा जनता को जगाने के लिए सीधी और सरल भाषा मे छोटी-छोटी पुस्तकें , कहानियाँ ,नाटक आदि लिखने में लगा दिये।

भागो नहीं(दुनिया को) बदलो , नइकी दुनिया, मेहरारून के दुरदसा ,दिमागी गुलामी ,तुम्हारी क्षय ,साम्यवाद ही क्यों, घुमक्कडशास्त्र तथा वोल्गा से गंगा जैसी रचनाएं देकर भारतीय समाज कि बुराई, हर किस्म की दिमागी गुलामी, हर तरीके के पाखंड और अंधविश्वास और तमाम रूढ़ियों और वर्षों से चली आ रही घिसी-पिटी परंपराओं पर चोट की और मुक्ति के विचार को जनमानस तक जनमानस कि भाषा में प्रस्तुत किया। वे हर तरह की शिथिलता, गतिरोध, कुपमंडूकता, अंधविश्वास, तर्कहीनता जैसे कारकों पर चोट करते थें और उनके उपायों के लिए लोगों के बीच में आह्वान करते थें। ताकि सम्माज के नवाचार मे गतिरोधों का कोई अस्तित्व न हो।
आज के समय में जब लोगों के बीच में जाति-धर्म पर, भाषा-बोली के नाम पर भेदभाव, क्षेत्रवाद जैसे गंभीर मसलों पर आपस में लड़ाया जाता है। ऐसे में राहुल सांकृत्यायन जी के कहानियों और निबंधों के माध्यम से लोगों मे जन जागरुकता की जरूरत पड़ती है क्योंकि उनकी रचनाओं में सामाजिक अराजकताओं से निपटने के वैचारिक उपाय और उपचार हैं। क्योंकि उनका मानना है कि “हमें अपनी मानसिक दासता की बेड़ी की एक-एक कड़ी को बेदर्दी के साथ तोड़कर फेंकने के लिए तैयार रहना चाहिए। बाहरी क्रांति से कहीं ज्यादा जरूरत मानसिक क्रांति की है। हमें आगे-पीछे-दाहिने-बायें दोनों हाथों से नंगी तलवारें नचाते हुए अपनी सभी रूढ़ियों को काटकर आगे बढ़ना होगा। ”
आज 9 अप्रैल है आज के दिन राहुल सांकृत्यायन का जन्मदिवस है। भले ही आज के समय की मीडिया-अखबार,न्यूज चैनल इनकी खोजों-साहित्यों को कवरेज करे या ना करे हम उनकी विरासत को याद रखेंगे। ऐसे ही साहित्य और कला, तकनीकी और विज्ञान जैसे मुद्दे हम आपके समक्ष लेकर आते हैं। आने-वाली ताज़ातरीन खबरों के लिए Khabarez.in को फॉलो करें और अपनी राय कमेन्ट बॉक्स में साझा करें।
मुख्य स्त्रोत: @Lifenoteasy001,Janchetna, Dimagi gulami by Rahul sankrityayan.
Kusum
Rahul sankrityayan ki virasat jindabad!!