1 मई को अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस (International Workers’ Day) या श्रमिक दिवस (Labour Day) के रूप में मनाया जाता है। इसे “मई डे” (May Day) भी कहा जाता है। यह दिन दुनिया भर के श्रमिकों के अधिकारों, संघर्षों और उपलब्धियों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। पहले के समय में मजदूरों का शोषण अपने चरम पर था लोगों से 16-18 घंटे तक काम लिया जाता था। कंपनियों और फैक्ट्रीयों में काम करने वाले मजदूरों को दिन का सूरज देखना नसीब नहीं हो पता है। क्योंकि वे सूरज निकलने से पहले और सूरज डूबने के बाद तक काम करते थें। कारखानों में किसी भी प्रकार की सुरक्षा,प्रकाश या सामान्य सुविधा उपलब्ध नहीं थी। यह मजदूर वर्गों के संघर्षों की ही देन है हमें ऑफिस,कल-कारखानों में समुचित व्यवस्था मुहैया करायी जाती है।

आज के समय में भी पूंजीवादी व्यवस्थायें अतिरिक्त लाभ कमाने के लिए नये-नये हथकंडे अपनाती रहती है जिसको सरकारें अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए इन पूँजीपतियों का सहारा लेती हैं और बदले में पूँजीपतियों को और ताकतवर बनातीं हैं। जिससे पूरा तंत्र पूँजीपतियों के हित के लिए काम करने लगता है। यही कारण है कि इतने संघर्षों के बाद भी हम मजदूर वर्गों के शोषण के नए आयाम गढ़े जातें हैं। इतने संघर्षों के बाद मिली आजादी को भी पूंजीपति वर्ग के लोग एक-एक करके खत्म करते चले जा रहे हैं। आज के समय में भी हमारे देश में 12-14 घंटे कार्य करने को मज़बूर किया जा रहा है, आये दिन सुरक्षा लापरवाही से सैकड़ों मजदूरों की मौत होती है, आये दिन पेंशन बहाली और तनख्वाह के लिए लड़ना पड़ता है। ऐसे समय में 1 मई के संघर्षों को याद करना जरूरी हो जाता है। यह दिन छुट्टी का न होकर समुचे समाज के उन पुरखों को याद करने और उनकी विरासत को संभालने और निरंतर पूँजीपतियों के जालसाजी हथकंडों को नस्तानाभूत करने का दिन है।
1 मई का इतिहास:
1. अमेरिका से शुरुआत:
- 1886 में अमेरिका के शिकागो शहर में हज़ारों मज़दूरों ने काम के घंटे को 8 घंटे करने की माँग को लेकर हड़ताल की थी।
- पहले मज़दूरों से 10-16 घंटे तक काम लिया जाता था, और उन्हें बहुत कम मजदूरी मिलती थी।
- इस आंदोलन की शुरुआत 1 मई 1886 को हुई थी।

2. हैमार्केट नरसंहार (Haymarket Massacre):
- 3 मई को शिकागो की एक फैक्ट्री के बाहर प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने मज़दूरों पर गोलियाँ चलाईं, जिससे कई लोग मारे गए।
- 4 मई को हैमार्केट स्क्वायर में एक शांति सभा हुई, जहाँ अचानक बम फटा, और पुलिस तथा आम नागरिकों की मौत हुई।
- इसके बाद कई श्रमिक नेताओं को दोषी ठहराकर फांसी दे दी गई या जेल भेज दिया गया।

3. 1889 में अंतरराष्ट्रीय मान्यता:
- 1889 में पेरिस में द्वितीय अंतरराष्ट्रीय मजदूर सम्मेलन (Second International) में फैसला हुआ कि 1 मई को उन शहीद मज़दूरों की याद में अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
दुनिया में 1 मई कैसे मनाया जाता है:
- कई देशों में यह राष्ट्रीय अवकाश होता है (जैसे भारत, रूस, चीन, ब्राज़ील आदि)।
- इस दिन रैलियाँ, जुलूस, भाषण और सेमिनार होते हैं।
- मज़दूर यूनियनें अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन करती हैं।
- सरकारें और संस्थाएँ मज़दूरों के योगदान को सम्मानित करती हैं।
भारत में मज़दूर दिवस कब शुरू हुआ?
भारत में पहली बार मज़दूर दिवस 1923 में चेन्नई (तब मद्रास) में मनाया गया था। इसे कॉमरेड सिंगारवेलु चेट्टियार ने शुरू किया। उसी दिन उन्होंने भारत की पहली मजदूर पार्टी की स्थापना भी की थी।

आज जब पूँजी का बोलबाला है और मेहनतकश पसीने से नहीं, खून से इतिहास लिख रहा है —तब 1 मई की अहमियत और बढ़ जाती है।यह दिन हमें सिर्फ अतीत नहीं, वर्तमान की सच्चाइयों से भी रूबरू कराता है —
जहाँ मज़दूर अब भी शोषण की जंजीरों में जकड़ा है, और हक़ के लिए आवाज़ उठाना आज भी एक अपराध जैसा बना दिया गया है। इसलिए 1 मई महज़ छुट्टी नहीं, संघर्ष की मशाल है —जिसे जलाए रखना, हर सोचने-समझने वाले इंसान की नैतिक जिम्मेदारी है।
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