क्या सच में रूह अफ़ज़ा के profit से मदरसे-मस्जिदों में फंडिंग की जाती है?

क्या सच में रूह अफ़ज़ा के profit से मदरसे मस्जिदों में फंडिंग की जाती है

आज-कल रूह अफ़ज़ा सोशल मीडिया पर काफ़ी चर्चा में है। वक्फ बिल संसद में पारित होने के बाद जगह-जगह प्रदर्शन और विरोध ने देश में धार्मिक कट्टरवाद को हवा दे दिया है। वक्फ बिल के समर्थन में आए तथाकथित लोगों के द्वारा वक्फ से संबंधित संपत्तियों-जगहों और उससे जुड़ें अन्य संस्थाओं अलग-अलग सवाल उठाए जा रहें हैं। रूह अफ़ज़ा एक पेय पदार्थ(शरबत) है जो कि हमदर्द इंडिया कम्पनी के द्वारा निर्माण किया जाता है। हाल ही में चर्चाओं के बीच हमदर्द कंपनी का नाम इसलिए आया क्योंकि हमदर्द इंडिया पहले वक्फ और अब चेरटबल संस्था के रूप मे कार्य करती है। नीचे हमदर्द इंडिया कंपनी के बारे में कुछ तथ्य दिये हैं-

रूह अफ़ज़ा का बॉटल
  • हमदर्द लैबोरेटरीज (भारत) भारत में एक 
    यूनानी दवा और खाद्य कंपनी है। इसकी स्थापना 1906 में हकीम हाफ़िज़ अब्दुल मजीद द्वारा दिल्ली में की गई थी।
  •  1948 में एक वक्फ (गैर-लाभकारी ट्रस्ट) बन गया।
  • कंपनी के पास 500 से ज़्यादा प्राकृतिक और जड़ी-बूटी आधारित उत्पाद हैं। इसके कुछ जाने-माने उत्पाद हैं 
    शरबत रूह अफ़ज़ा , साफ़ी , पचनौल, रोगन बादाम शिरीन, सुआलिन, जोशीना और सिंकारा इत्यादि।
  • हमदर्द फाउंडेशन की स्थापना 1964 में समाज के हितों को बढ़ावा देने के लिए कंपनी के मुनाफे को वितरित करने के लिए की गई थी। कंपनी का ज्यादातर मुनाफा फाउंडेशन को जाता है।
roohafzafounder
Roohafza founder Hakim Hafiz Abdul Majeed.

हद तो तब हो गयी जब बाबा रामदेव ने अपने पतंजलि प्रोडक्ट के शर्बत का विज्ञापन सोशल मीडिया पर प्रस्तुत किया। वे रूह अफ़ज़ा(हमदर्द इंडिया ) कंपनी पर निशाना साधते हुए बोले कि मार्केट में एक कंपनी है जो शर्बत बनाती है उससे जो प्रॉफ़िट होता है उससे मदरसे और मस्जिद को फंडिंग की जाती है। अगर आप उनका शर्बत पियेंगे उससे मदरसे और मस्जिदें बनेंगी और अगर आप हमारा शर्बत पियेंगे तो देश भर में गुरुकुलम-अचार्यकुलम-पतंजलि विश्वविद्यालय बनेंगे। देश मे जैसे लव जिहाद-वोट जिहाद चल रहें हैं वैसे ही शरबत जिहाद चल रहा है। आपको इस शर्बत जिहाद से बचाना है। बाबा रामदेव अपने प्रोडक्ट को बढ़ावा देने के लिए आये दिन किसी न किसी विवादित बयान में धरे जाते हैं। हमेशा से ही हिंदुत्ववाद और राष्ट्रवाद का लेबल लगाकर प्रोडक्ट बेचने के नये हथकंडे अपनाते रहते हैं। रूह अफ़ज़ा के profit से मदरसे-मस्जिदों में फंडिंग की जाती है? इस बात कि पुष्टि करने के लिए रिपोर्टर और Youtuber अजित अंजुम ने हरियाणा के मनेसर में रूह अफ़ज़ा उत्पादन फैक्ट्री में जाकर रिपोर्टिंग की।

अजित अंजुम ने मामले का पूरा ग्राउन्ड रिपोर्ट का जायजा लिया और विडिओ अपने यूट्यूब चैनल Ajit Anjum पर अपलोड किया है। जिसका विडिओ लिंक नीचे दिया गया है। वह वहाँ के Quality और Marketing टीम के कर्मचारियों से मिलें जिनमें उन्होंने पाया कि भले ही कंपनी के फाउन्डर मुस्लिम समाज से आते हों लेकिन कर्मचारियों के लिए मुस्लिम व गैर मुस्लिम देखकर नियुक्त नहीं किया जाता। साथ ही रिपोर्टर अंजुम नें हमदर्द इंडिया के CEO हमिद अहमद से रूह अफ़ज़ा और हमदर्द कंपनी के बारे में बहुत सारी बातचीत की। साथ ही रिपोर्टर अंजुम ने रामदेव के बयान को साझा करते हुए पूछा कि क्या रूह अफ़ज़ा के आमदनी से मस्जिदें और मदरसे में फंडिंग कि जाती है? सीईओ हमिद अहमद ने साफ बताया कि रूह अफ़ज़ा से आमदनी आती है उसे किसी भी धार्मिक अनुष्ठानों या मस्जिद- मदरसों मे फंडिंग नहीं किया जाता। हाँ यह है कि इन जगहों पर रूह अफ़ज़ा की मांग ज्यादा होती है। साथ ही हमदर्द और वक्फ के बीच कोई कोई संबंध न होने का जिक्र किया और यह बताया कि हमदर्द कंपनी 2011 से चैरिटबल ट्रस्ट के रूप में कार्य करती हैं। हमीद अहमद ने यह भी बताया कि रूह अफ़ज़ा के लाभ का 85% हिस्सा चैरिटबल ट्रस्ट को जाता है जिससे स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटीज और रिसर्च इंस्टिट्यूट के निर्माण और प्रबंधन मे प्रयोग होता है। उन्होंने जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी के बारे में भी जिक्र किया कि इस यूनिवर्सिटी मे हर साल लगभग 10 हजार बच्चें अपनी पढ़ाई और रिसर्च पूरी करते हैं जो कि हर समुदाय से आतें हैं और अलग अलग देशों में जॉब करते हैं।

हम ऐसे ही ताज़ा खबर आपके बीच लाते रहेंगे। हमसे जुड़ें रहने के लिए खबरेज़.इन के पेज को फॉलो करें। आप कमेन्ट बॉक्स में अपनी राय साझा कर सकतें हैं। मिलते हैं ऐसे कि किसी खास ख़बर के साथ। धन्यवाद !!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *