सांप्रदायिकता की आग को ठंडी कर देंगी हिंदी साहित्य की ये कृतियां! LITRATURE ABOUT COMMUNALISM

LITRATURE ABOUT COMMUNALISM सांप्रदायिकता पर आधारित किताबें

भारत विविधताओं का देश है। यहां अलग-अलग राज्य की अलग-अलग भाषाएं हैं और कई बोली जाने वाली बोलियां भी विभिन्न हैं। यह भी कहा जा सकता है कि भारत विश्व में ऐसा अनोखा बगीचा है जिसमें अलग-अलग तरह के फूल खिलते हैं। जाहिर है इतनी विविधताओं में वैचारिक विविधता भी विभिन्न ही रहेगी। ऐसे में देश एक बड़ा लोकतंत्र होने की वजह से सांप्रदायिकता की बीमारी से खुद को बचा नहीं सकता। क्योंकि एक बड़े लोकतांत्रिक देश को चलाने वाले एक समय में सत्ता की लालच में अंधे हो ही जाते हैं। सत्ता की भूख इतनी प्रबल होती है कि जनता को जाति-धर्म-वेशभूषा-भाषा के आधार पर अपना वोट-बैंक भरते हैं और जनता को एक-दूसरे के खून के प्यासे बना देते हैं। समाज की इसी दुर्दशा को ‘सांप्रदायिकता’ की संज्ञा दी गई है।

The Million Minorities Theory of Indian Politics The Emissary
The Million Minorities Theory of Indian Politics The Emissary

आज का दौर:

आज के दौर का समाज भी इस संज्ञा से अछूता नहीं है। देश भर में किसी न किसी रूप में सांप्रदायिक दंगों को भड़काया जा रहा है। ये दंगे कभी हिन्दू मुस्लिम हो जाते हैं, तो कभी ब्राह्मण और दलित, और कभी हिन्दी-मराठी हो जाते हैं। सांप्रदायिकता की बीमारी किसी संक्रमित बीमारी से कहीं ज्यादा खतरनाक होती है। आजादी के बाद से अबतक हमारे नेता मंत्री किसी न किसी रूप में सांप्रदायिकता को खाद पानी देते रहते हैं। क्योंकि यहीं उनको सत्ता हासिल करने की ताकत पैदा करता है।

साहित्य और सांप्रदायिकता:

सांप्रदायिकता आज से नहीं आजादी से पहले की बीमारी है। जाहिर है कि सांप्रदायिक दंगों की भेट चढ़ने वाली निर्दोष आवाम हर दंगों में एक प्रश्नचिन्ह छोड़कर जाती है। किसी समाज के उत्थान की बागडोर उस समाज के बुद्धिजीवियों-साहित्यकारों और जनवादियों के हाथों में होती है। दंगों के प्रत्यक्षदर्शी होने के कारण इनकी नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है कि सांप्रदायिक दंगो के प्रश्नचिन्ह को सुलझाया जाए और किसी पुख्ते रास्ते की तलाश की जाए जिससे समाज से इस कैंसर को खत्म किया जा सके।

हिंदी साहित्य की कृतियां:

हिंदी साहित्यकारों ने अपने-अपने समय के सांप्रदायिक दुर्दशा को अपनी आंखों से देखा और उनपर विमर्श किया जिससे उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से समाज को समय-समय पर उभारने का काम भी किया। इनमें से कुछ साहित्यकारों की रचना इस प्रकार है-

LITRATURE ABOUT COMMUNALISM सांप्रदायिकता पर आधारित किताबें (1)
LITRATURE ABOUT COMMUNALISM सांप्रदायिकता पर आधारित किताबें (1)

1. तमस-भीष्म साहनी

तमस भीष्म साहनी द्वारा लिखा गया एक उपन्यास है। जो कि 1947 बंटवारे के पहले होने वाले सांप्रदायिक दंगों का वर्णन है।यह उपन्यास सांप्रदायिकता की क्रूरता को बेनकाब करता है।

2. झूठा सच-यशपाल

भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद की त्रासदी, और धार्मिक नफरत के बीच एक लेखक की चेतना का द्वंद्व क्या है, यह उपन्यास दर्शाता है।

3. आधा गाँव – राही मासूम रज़ा

यह 1992 के बाबरी मस्जिद के सांप्रदायिक दंगे के बाद का मुस्लिम समाज पर असर का वर्णन और महिलाओं की दृष्टि से सांप्रदायिकता को देखता है।

4. हाशिए का आदमी- हरिशंकर परसाई

हरिशंकर परसाई जी के द्वारा लिखा यह एक कथासंग्रह है जो सांप्रदायिकता पर व्यंग्यात्मक वर्णन किया है साथ ही सांप्रदायिकता की गंभीरता भी दिखाई गई है।

5. आधा फूल आधा शव – अब्दुल बिस्मिल्लाह

यह सांप्रदायिक दंगों के बाद की सामाजिक और मानसिक स्थिति पर आधारित एक मार्मिक कथा है।

6. पिंजर-अमृता प्रीतम

एक हिन्दू लड़की को मुस्लिम लड़के द्वारा उठा ले जाने की पृष्ठभूमि पर, यह उपन्यास नारी अस्मिता और सांप्रदायिक हिंसा के द्वंद्व को दर्शाता है।

7. गोधरा:एक षड्यंत्र-अनिल माहेश्वरी

यह वृतांत और उपन्यास के बीच की शैली में लिखा 2002 के गोधरा कांड और उसके बाद गुजरात में हुए नरसंहार को वर्णित किया गया है।

8. कितने पाकिस्तान-कमलेश्वर

कमलेश्वर जी के इस उपन्यास में ऐतिहासिक और दार्शनिक विमर्श का मिश्रण है।

9. दंगा- रामकृष्ण मिश्र

“दंगा” रामकृष्ण मिश्र की एक प्रसिद्ध कहानी है, जो सांप्रदायिक दंगों के प्रभाव और मानवीय संवेदनाओं को उजागर करती है। यह कहानी भारतीय समाज में धार्मिक उन्माद और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाली विभाजन की गहरी पड़ताल करती है।

10. टोबा टेक सिंह- मंटो

मंटो के द्वारा लिखी गई एक छोटी सी कहानी है। जिसमें बंटवारे के समय की सांप्रदायिकता पर कटु प्रहार किया गया है। जिसमे एक व्यक्ति पर दंगों का असर किस कदर हो सकता है यह दिखाया गया है।

आज के दौर में ऐसे साहित्यों पर ध्यान आकृष्ट कराना और अनिवार्य हो गया है क्योंकि इस समय में किसी व्यक्ति को इसलिए पीट दिया जा रहा है क्योंकि उसको मराठी या अन्य भाषा नहीं आती। किसी व्यक्ति को इसलिए मॉब लिंच किया जा रहा है क्योंकि वह किसी और धर्म-मजहब को मानता है। या किसी व्यक्ति को बीच चौराहे पर पीट-पीट कर इसलिए मार दिया जाता है क्योंकि वह किसी निम्न जाति से आता है। पाठकों से अपील है कि ऐसे भीड़ का हिस्सा बनने से बचें और अपने वैचारिक मूल्यों और तर्क को अपनी ताकत बनाएं और साथ ही साथ लोगों को भी जागरूक करें।

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